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आर्य और अनार्य संस्कृति


आर्य का अर्थ होता है -जो वयक्ति अपनी बात बिना तर्क -वितर्क किये ही मानने के लिए बाध्य क्र दे उसे आर्य कहते है, ऐसे लोग है -यूरेसियन लोग जो लुटेरे और घुम्मकड़ क्र रूप में आये थे और यही अस्थाई रूप से बस गए, ये यूरेसियन लोग ही आज के ब्राह्मण है ,इन्ही ब्राह्मणो के भाग्य और भगवन यज्ञ और कर्मकांड,देवी-देवता को मानने के लिए बाध्य किया, बुद्धि साहित्य में आर्य शब्द की उत्पत्ति खोजने पर जानकारी मिलती है की भारत के किसान अपने आपमें खेतो की पहचान के लिए आरी बनाते थे, आज भी बनाते है, आरी कहते है सीमा रेखा की, सिचाई के लिए बनाते है ठीक उस तरह यूरेसियन लोगो भी आरी बनाते ही, ठीक उसीतरह यूरेसियन लोगो ने हमें ६४२७ जातियों में बाँटकर ६४२७ आरी बना दिया| प्रत्येक जाती समूह को अपने ही सिमा रेखा में रहने की कड़ी चेतावनी दी गयी , इस चेतावनी को कानून की पुस्तक मनुस्मृति में लिख दिया, धार्मिक पुस्तकों गीता में लिख दिया, इसी के साथ "आरिए पर रहो" ऐसी चेतावनी के साथ लगातार हमारी पहरेदारी करता रहा| 

एकाछेरी के आधार पर आर्य शब्द आ+र+य बना है, जो आ=आओ, र=रमन करो, य=यज्ञ का प्रतिक है ,आओ यज्ञ में रमन करो ऐसा कहने वाला आय है, ब्राह्मण है, इसका संगरक्षण करने वाला छत्रिय और वैश्य भी आर्य है| 

इसी संस्कृति को आर्य संस्कृति कहते है, ये सब हमारी संस्कृति नहीं है, हमलोग प्राकतिक पूजक है 


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